
पंजाब, होशियारपुर (ज्योत्सना विज) लोकतंत्र में पक्ष व विपक्ष दोनों का मजबूत होना जरूरी है। अगर पक्ष अधिक मजबूत होगा तो वहां पर विपक्ष की आवाज को नजरअंदाज कर दिया जाएगा। इसलिए अक्सर कहा जाता है कि किसी भी राज्य को अच्छी तरह से चलाने के लिए वहां पर मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है।
अगर किसी राजनीतिक दल को असीम बहुमत मिल जाता है तो फिर वह जनता के हितों की अनदेखी करने पर भी उतर आता है। देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की हालत इस समय ऐसी है कि उनके नेताओं को ही समझ नहीं लगता कि वह ऐसा क्या करें कि वह कम से कम मुख्य विपक्षी दल के तौर पर तो हर प्रदेश में उभर कर सामने आए। कई प्रदेशों में तो कांग्रेस हाशिए पर चली गई है जो कि देश के लिए अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि कांग्रेस का संबंध शुरू से ही आम जनता के साथ अल्पसंख्यकों के साथ तथा पिछड़े दबे कुचले लोगों के साथ रहा है।
डॉ मनमोहन सिंह की 2014 तक चलने वाली सरकार के समय कांग्रेस न केवल सत्ता में केंद्र में रही बल्कि देश के कई राज्यों में कांग्रेस का बोलबाला था। लेकिन यहीं से हालात बदलने शुरू हुए और 2014 के बाद कांग्रेस ने जिस प्रदेश में चुनाव लड़ा वहां पर उन्हें एक दो जगह को छोड़कर आशा अनुसार सफलता नहीं मिली। इस समय कांग्रेस केवल पंजाब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही स्वतंत्र रूप से सत्ता में है। इसके अलावा वह चार पांच राज्यों में सरकार में शामिल तो है लेकिन उसका नेतृत्व उसके पास नहीं है इनमें केरल महाराष्ट्र का नाम लिया जा सकता है।
कांग्रेस के पतन के लिए बहुत से लोग सोनिया गांधी व राहुल गांधी को जिम्मेदार मानते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस को 2004 में सत्ता में लाने वाली भी सोनिया गांधी ही थी। तब यही कांग्रेसी नेता तथा कांग्रेस के आलोचक सोनिया गांधी को देश की शक्तिशाली नेत्री मान्य से संकोच नहीं करते थे लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को मिली अपार सफलता के बाद कांग्रेस का ग्राफ गिरना क्या शुरू हुआ। विपक्षी तो विपक्षी कांग्रेस के अपने नेता भी नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने 2019 के चुनावों में हार के बाद अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद पार्टी को किसी नए नेता को आगे करने का समय मिला लेकिन किसी पर भी सहमति नहीं बनी जिसके चलते सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद तो पार्टी में लेटर बम का प्रचलन शुरू हो गया। हर कोई अपनी बात को लेटर लिख कर कहने लगा। लेकिन इन लोगों ने राहुल गांधी व सोनिया गांधी की पार्टी के प्रति की गई सेवाओं को एकदम से नजरअंदाज कर दिया ।
जो लोग आज राहुल गांधी व सोनिया गांधी की आलोचना कर रहे हैं उनमें से अधिकतर लोग उच्च पद पाने के लिए उन्हींकी जी हुजूरी करते रहे हैं। लेकिन कांग्रेस की समस्या यह है कि राहुल सोनिया प्रियंका को छोड़कर कोई भी नेता किसी भी प्रदेश में पूरी जिम्मेदारी अपने सिर नहीं लेना चाहता। जो नेता सोनिया गांधी व राहुल गांधी की आलोचना कर रहे हैं वह किसी एक राज्य की जिम्मेदारी लेकर दिखाएं तो उन्हें दाल आटे का भाव पता चल जाएगा।
आज कांग्रेस की हालत ऐसी हो गई है कि मुख्य प्रदेशों उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार आदि में उसे किसी पार्टी के सहारे की जरूरत पड़ने लगी है के प्रदेशों में तो उन्हें इतनी सीटें भी नहीं दी जाती कि वह सरकार में मुख्य दल बन कर आ सके। कांग्रेस के कई नेताओं ने तो हार को अपनी नियति ही समय दिया है। इसलिए वह हार के बाद भी लोगों के बीच जाना पसंद नहीं करते पहले कांग्रेसी नेता जनता के बीच जाते थे। उस समय फाइव स्टार होटल का प्रचलन नहीं था लेकिन आज नेता फाइव स्टार होटल के प्रचलन का आनंद लेते हुए अपनी राजनीति बैठ करते हैं। बड़े नेता होटलों में चार पांच लोगों से मिलकर ही अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर लेते हैं। देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के लिए इससे ज्यादा निराशा और क्या हो सकती है कि छोटे-छोटे राजनीतिक दल भी उसे आंखें दिखाने लगे हैं। वक्त की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस को अपने सीनियर नेताओं को संगठन में लाना चाहिए तथा उन्हें एक एक दो दो राज्यों की जिम्मेदारी देकर वहां पर पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम करना चाहिए। पार्टी को उन्हें वहां पर संगठन में अपनी इच्छा अनुसार काम करने की छूट देनी चाहिए ताकि चुनावों के बाद संगठन की कमजोरी का रोना न हो सके।
इसके अलावा उन्हें प्रयास करना चाहिए कि जो सीनियर नेता किसी समय कांग्रेस में रहे हैं तथा वह आज किसी भी राजनीतिक दल में चले गए हो उन्हें फिर से पार्टी में लाने का प्रयास करना चाहिए। हो सकता है ऐसा करने में उन्हें 25% ही सफलता मिले लेकिन इससे पार्टी को कुछ ना कुछ बोल तो जरूर मिलेगा। इसके अलावा संगठन के सभी पद चुनाव द्वारा भरे जाए न कि मनोनीत किया जाए। एक बार जनता से जुड़े नेता आगे आएंगे तो फिर पार्टी को पुराना गौरव हासिल करने में मुश्किल नहीं होगी। सोनिया गांधी को पार्टी की कमान राहुल गांधी के सुपुर्द कर पार्टी में चार पांच उपाध्यक्ष भी बना देना चाहिए तथा उनका काम स्पष्ट रूप से बांट कर अगले चुनावों की तैयारी अभी से करनी चाहिए।
इसके अलावा उसे इस बात का प्रयास करना चाहिए कि मैं हर राज्य में दूसरों कि बैसाखी के सहारे लड़ने की बजाय अपने दम पर चुनाव लड़े। चुनावों में ऐसे लोगों को टिकट दे जिनका किरदार एकदम साफ हो किसी पर अपराधी को चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो चुनावों से दूर रखा जाए इसके अलावा तुष्टीकरण की नीति को त्याग कर सभी वर्गों के हितों की रक्षा के लिए आगे आए ऐसा करने पर पार्टी में सुधार की संभावनाओं को पैदा किया जा सकता है। पंजाब राजस्थान मे सरकारी बने हुए काफी समय हो गया है पार्टी को जहां पर फिर से सत्ता में आने के लिए अभी से मेहनत शुरू कर देनी होगी। अगर पार्टी दो चार राज्यों में लगातार सत्ता में आ गई तो फिर देश में हालात बदलते देर नहीं लगेगी।
