
- मैं तो साइंस का स्टूडेंट रहा लेकिन मुझे इतिहास में काफी रुचि थी , कहानी नावेल की जगह मैं इतिहास पढ़ना पसंद करता था । बहुत ज्यादा ज्ञान तो नही मुझे लेकिन किन्तु अपने अल्प ज्ञान की रिसर्च लिख रहा हूँ जो इंटरनेट और पुस्तकों , तथा अपने बच्चो की किताबों में 30 साल पहले से देखा ।
मैं याद करता हूँ उस 30 साल पहले आये NCERT की किताबों में इतिहास को देखना और पढ़ना शुरू किया और भारत के मध्यकाल के इतिहास को पढ़ा तो उस समय अखबारों में छपने वाले इतिहास के लेखों में इरफान हबीब , रोमिला थापर को महान इतिहासकार के रूप में देखा गया अब मैं एक ऐसे समय मे हूँ जब टेक्नोलॉजी ने कमाल ही कर दिया है इंटरनेट के 4 G , 5G जेनरेशन अपने आईफोन पर सब कुछ देख सकता है ।
और पढ़ सकता है दुनिया की किसी भी लाइब्रेरी किसी भी भाषा और उसके अपने अनुकूल अनुवाद में हर दस्तावेज उसकी उंगलियों में मौजूद है ।
भारत का अतीत आज हर युवा को आकर्षित कर रहा है , वह भले ही किसी भी विषय मे पढ़ा हो लेकिन भारतीय इतिहास में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है वह बिना लाग लपेट वाला सच जानने को उत्सुक है , जिसमे न किसी सरकार की मन मर्जी हो न किसी पंथ की बदनीयत ।
इतिहास जानने के लिए उसे MA डिग्री और मिलावटी किताबों की कतई ज़रूरत नही है । भारत के विश्वविद्यालयों के इतिहास विभाग ऐसे उजाड़ कब्रिस्तान हैं जहां डिग्रीधारी मुर्दा इतिहास के नाम पर फातिहा पढ़ने जाते रहे हैं । उनकी आंखें मध्यकाल के इतिहास में की गई आपराधिक मिलावट को देख ही नही पाती । लेकिन इंटरनेट ने सारी दीवारें गिरा दी हैं । सारे हिजाब हटा दिए हैं । सारी चादरें उड़ा दी हैं और मध्यकाल अपनी तमाम बजबजाती बदशक्ल के साथ सबके सामने नँगा होकर आ गया है ।
ज़िस इस्लाम के नामपर दिल्ली पर कब्जे के बाद 700 वर्षों तक जो घटा वह सब दस्तावेजों में ही है । आज के नवजवानों को यह सुविधा उन हजार सालों बाद ही मिली है कि वह उसी इस्लाम की मूल अवधारणाओं को सीधा देख ले , कुरान अपने अनुवाद के साथ सबको मुहैया है और हदीस के सारे संस्करण भी ।
जनाब आज की पीढ़ी जड़ों में झांक रही है ।
कभी बहुत इज़्ज़त से याद किये जाने वाले रोमिला थापर , इरफान हबीब , आज इतिहास लेखन का जिक्र आते ही एक गाली की तरह हो गए हैं , जिन्होंने उल्टी व्याख्याएं कर इतिहास को दूषित करने की कोशिश किया है ।
कभी वक्त मीले तो विचार कीजियेगा क्यों लोग इतनी लानतें भेज रहे हैं । वामपंथ को अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने की दिव्य दृष्टि कहाँ से प्राप्त होती है ।
आज़ादी और मजहब की बुनियाद पर , मुल्क के बंटवारे के साथ एक नया सफर शुरू कर रहे हजारों साल पुराने इस मुल्क में इससे बड़ा और अहम काम कोई नही था ।
जो इतिहास लिखा जाने वाला था आज़ाद भारत की आने वाली पीढ़ियां उसी के ज़रिए अपने मुल्क के अतीत से रूबरू होने वाली थीं , लेकिन हुआ क्या आज आप स्वयं को कहाँ पाते हैं?
मैं चाहता हूँ आप चुप्पी तोड़ें अपने गिरेबाँ में झांके और उठ रहे हर सवाल का जवाब दें , सामने आये अपने साथ के अन्य इतिहास के लेखकों को साथ लाएं , वैसे भी अब आपको पाने के लिए रह ही क्या गया है , पद प्रतिष्ठा , पुरस्कार से परे हो चुके हैं आप , अब न कुछ हासिल होने वाला है और न ही कोई यह सब आपसे छीन कर ले जाएगा ।
अगर इतिहास से छेड़छाड़ नही हुई है तो आपको खुल कर कहना चाहिए किन्तु आप भी जानते हैं और पूरा विश्व असलियत जनता है इस लिए अब आप समक्ष नही आएंगे ,
अंत मे एक बात आप से ज्यादा ईमानदार तो पुर्तगाली और अंग्रेज तथा चीनी इतिहासकार हैं जिन्होंने सच्चाई समक्ष रख दिया है ।
Dr AK Pandey .
साभार इंटरनेट एवम पत्र